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अथो॒ श्वा अस्थि॑रो भवन् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अथो । श्वा । अस्थिर: । भवन् ॥१३०.१९॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:130» पर्यायः:0» मन्त्र:19


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अथो) अथवा (श्वा) कुत्ते [के समान] (अस्थिरः) चञ्चल स्वभाववाला (भवन्) होता हुआ ॥१९॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥
टिप्पणी: १९−(अथो) पक्षान्तरे। अथवा (श्वा) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१९। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। कुक्कुरो यथा (अस्थिरः) चञ्चलप्रकृतिः (भवन्) सन् ॥