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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अथो) फिर वह [पुत्र] (इयन्-इयन्) चलता हुआ, चलता हुआ [होवे], (इति) ऐसा है ॥१७॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥
टिप्पणी: १७−(अथो) अनन्तरम् (इयन्नियम्) इण् गतौ-शतृ, इयङ् इत्यादेशः, द्वित्वं च। यन् यन्। गच्छन् गच्छन्-स भवतु (इति) एवम् ॥