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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इरावेदुमयम्) भूमि के ज्ञानवाला व्यवहार [उस को] (दत) तुम दो ॥१६॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥
टिप्पणी: १६−(इरावेदुमयम्) ऋज्रेन्द्राग्र०। उ० २।२८। इण् गतौ-रन्, गुणाभावः। भृमृशीङ्०। उ० १।७। विद ज्ञाने-उप्रत्ययः। इराया भूमेर्ज्ञानयुक्तं व्यवहारम् (दत) तलोपः। यूयं दत्त ॥