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मा त्वा॑भि॒ सखा॑ नो विदन् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा । त्वा । अभि । सखा । न: । विदन् ॥१३०.१४॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:130» पर्यायः:0» मन्त्र:14


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा) तुझसे (नः) हमारा (सखा) सखा [साथी] (मा अभि विदन्) कभी न मिले ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने मित्रों को दुष्टों से कभी न मिलने देवे ॥१३, १४॥
टिप्पणी: १४−(मा) निषेधे (त्वा) त्वाम् (अभिः) सर्वतः (सखा) (नः) अस्माकम् (विदन्) प्राप्नोतु ॥