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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (एनश्चिपङ्क्तिका) पाप के नाश का फैलानेवाला (हविः) देन-लेन [होवे] ॥११॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सत्य से व्यवहार करके धन प्राप्त करे ॥११, १२॥
टिप्पणी: ११−(एनश्चिपङ्क्तिका) वातेर्डिच्च। उ० ४।१३४। एनः+चन श्रद्धोपहननयोः-इण् डित्। वृतेस्तिकन्। उ० ३।१४६। पचि व्यक्तीकरणे विस्तारवचने-तिकन्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः