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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (कः) कौन मनुष्य (बहुलिमा) बहुत से (इषूनि) इष्ट वस्तुओं को (अर्य) पावे ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥
टिप्पणी: [सूचना−पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो ॥]१−(कः) (अर्य) ऋ गतौ-इत्यस्य रूपम्। अर्थात्। प्राप्नुयात् (बहुलिमा) पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा। पा० ।१।१२२। बहुल-इमनिच्। बहूनि (इषूनि) इषु इच्छायाम् उप्रत्ययः कित्। इष्टवस्तूनि ॥