वांछित मन्त्र चुनें

अजा॑गार॒ केवि॒का ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अजागार । केविका ॥१२९.१७॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:129» पर्यायः:0» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (केविका) सेवा करनेवाली [बुद्धि] (अजागार) जागती हुई है ॥१७॥
भावार्थभाषाः - सेवा करनेवाली अर्थात् उचित काम में लगी हुई बुद्धि तीव्र होती है, घुड़चढ़े को उत्तम घोड़ा घुड़साल में मिलता है, गोशाला में नहीं ॥१७, १८॥
टिप्पणी: १७−(अजागार) जागरिता सावधाना अभवत् (केविका) केवृ सेवने-ण्वुल्, टाप् अत इत्त्वम्। सेविका बुद्धिः ॥