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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (पल्प) हे रक्षक ! (बद्ध) हे प्रबन्ध करनेवाले ! [पुरुष] (वयः इति) यह जीवन है ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सावधान जितेन्द्रिय होकर पाप से बचने का उपाय करते रहें ॥१, १६॥
टिप्पणी: १−(पल्प) पानीविषिभ्यः पः। उ० ३।२३। पल गतौ रक्षणे च-पप्रत्ययः। हे रक्षक (बद्ध) कर्तरि क्त। हे प्रबन्धक (वयः) जीवनम् (इति) अवधारणे ॥