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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (गोमीद्या) वेदवाणी जाननेवाली [स्त्री] (गोगतीः) पृथिवी पर गतिवाली [प्रजाओं] को (सघाघते) सहाय करती हैं, (इति) ऐसा [निश्चय] हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुष मिलकर धर्मव्यवहार में एक-दूसरे के सहायक होकर संसार का उपकार करें ॥११-१४॥
टिप्पणी: १३−(सघाघते) म० १। साहयते (गोमीद्या) गौर्वाङ्नाम-निघ० १।११। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। मिदृ मेधाहिंसनयोः-यक्, टाप्, दीर्घश्च। गां वेदवाणीं मेदते प्रजानाति या सा (गोगतीः) गवि पृथिव्यां गतियुक्ताः प्रजाः (इति) एवमस्ति ॥