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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (च) जैसे (सुप्रपाणा) अच्छे पनघटवाला (वेशन्ता) सरोवर है, [वैसे ही] (सुप्रतिदिश्ययः) सुन्दर प्रतिदान करनेवाला (रेवान्) धनवान् और (सुयभ्या) अच्छे प्रकार मैथुनयोग्य [नीरोग होकर सन्तान उत्पन्न करने में समर्थ] (कल्याणी) सुन्दर (कन्या) कन्या है, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥९॥
भावार्थभाषाः - जल भरे सरोवर की उपयोगिता जल काम में आने से, धन की उचित व्यय करने से, और रूपवती स्त्री की वीर सन्तान उत्पन्न करने से होती है ॥९॥
टिप्पणी: ९−(सुप्रपाणा) शोभनपानस्थानोपेतः (च) उपमार्थे (वेशन्ता) तडागः (रेवान्) धनवान् (सुप्रतिदिश्ययः) म० ८। योग्यप्रतिदानप्रापकः (सुयभ्या) म० ८। सुमैथुनयोग्या। आरोग्यात् सन्तानोत्पादनसमर्था। अन्यद् गतम् ॥