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य आ॒क्ताक्षः॑ सुभ्य॒क्तः सुम॑णिः॒ सुहि॑र॒ण्यवः॑। सुब्र॑ह्मा॒ ब्रह्म॑णः पु॒त्रस्तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य: । आक्ताक्ष: ।सुभ्यक्त: । सुमणि: । सुहिरण्यव: ॥ सुब्रह्मा । ब्रह्मण: । पुत्र: । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:128» पर्यायः:0» मन्त्र:7


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (ब्रह्मणः) ब्रह्मा [वेदज्ञानी] का (पुत्रः) पुत्र (सुब्रह्मा) सुब्रह्मा [बड़ा वेदज्ञानी, सुमार्गी], (आक्ताक्षः) शुद्ध व्यवहारवाला और (सुभ्यक्तः) बड़ा विख्यात हो, वह (सुमणिः) बहुत मणियों [रत्नों]वाला और (सुहिरण्यवः) बड़ा तेजस्वी होवे, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥७॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् का सन्तान विद्वान् होने से ही संसार में प्रतिष्ठा पावे, यह वेदमत है ॥७॥
टिप्पणी: ७−(यः) सन्तानः (आक्ताक्षः) म० ६। आ+अञ्जू-क्त। शुद्धव्यवहारयुक्तः (सुभ्यक्तः) म० ६। सु+अभि+अञ्जू-क्त। अकारलोपः। बहुविख्यातः (सुमणिः) बहुरत्नयुक्तः (सुहिरण्यवः) महातेजस्वी (सुब्रह्मा) महावेदज्ञः (ब्रह्मणः) वेदज्ञस्य। अन्यद् गतम् ॥