बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो मनुष्य, (जाम्याः) कुल स्त्री को (अप्रथयः) गिराता है, (तत्) वह पुरुष, और (यत्) जो (सखायम्) मित्र को (दुधूर्षति) मारना चाहता है, और (यत्) जो (ज्येष्ठः) अति वृद्ध होकर (अप्रचेताः) अज्ञानी है, (तत्) वह (अधराक्) अधोगामी है−(इति) ऐसा (आहुः) वे लोग कहते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सती स्त्री को पाप में लगावे, मित्रघाती हो और वयोवृद्ध होकर भी अज्ञानी हो, वह विद्वानों में नीच गति पाता है ॥२॥
टिप्पणी: २−(यः) पुरुषः (जाम्याः) अथ० २।७।२। द्वितीयार्थे षष्ठी। जामिम्। कुलस्त्रियम् (अप्रथयः) पृथ प्रक्षेपे। प्रक्षिपति। अधोगमयति (तत्) सः (यत्) यः (सखायम्) (दुधूर्षति) धुर्वी हिंसायाम्-सन्। हन्तुमिच्छति (ज्येष्ठः) अतिवृद्धः सन् (यत्) यः (अप्रचेताः) अपण्डितः (तत्) सः (आहुः) कथयन्ति ते विद्वांसः (अधराक्) अधोगामी भवति (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥