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वा॑वा॒ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः। श्वा॒शुर॑श्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वावाता । च । महिषी । स्वस्त्या । च । युधिंगम: ॥ श्वाशुर: । च । अयामी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.११॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:128» पर्यायः:0» मन्त्र:11


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (च) जैसे (वावाता) अति शीघ्रकारिणी (महिषी) पूजनीया पत्नी, [वैसे ही] (स्वस्त्या) सुख के साथ [धर्म समझकर] (युधिंगमः) युद्ध में जानेवाला (च च) और (श्वाशुरः) बड़ा वेगशील (आयामी) शासन करनेवाला [सुखदायी है], (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥११॥
भावार्थभाषाः - कर्तव्य में दक्षा स्त्री, हर्ष के साथ युद्ध को जानेवाला शूर और शीघ्र स्वभाववाला राजा सुखदायी है ॥११॥
टिप्पणी: ११−(वावाता) हसिमृग्रिण्वामिदमि०। उ० ३।८६। वा गतिगन्धनयोः यङि तन् प्रत्ययः, टाप्। भृशं शीघ्रकारिणी (च) (महिषी) म० १०। पूजनीया पत्नी (स्वस्त्या) सुखेन। धर्मभावेन (च) (युधिंगमः) म० १०। युधौ युद्धे गमनशीलः शूरः (श्वाशुरः) म० १०। सु+आशुरः। सुष्ठु वेगवान् (च) (आयामी) म० १०। शासकः। अन्यद् गतम् ॥