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परि॑वृ॒क्ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः। अना॑शु॒रश्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परिवृक्ता । च । महिषी । स्वस्त्या । च । युधिंगम: ॥ अनाशुर: । च । आयामी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.१०॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:128» पर्यायः:0» मन्त्र:10


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (च) जैसे (परिवृक्ता) त्यागे हुए [कर्तव्य छोड़े हुए] (महिषी) पूजनीया गुणवती पत्नी, [वैसे ही] (स्वस्त्या) सुख के साथ [जीव चुराकर] (युधिंगमः) युद्ध से चल देनेवाला, (च च) और (अनाशुरः) आलसी (आयामी) शासन करनेवाला [निकम्मा है], (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - घर आदि कर्तव्य कर्म छोड़ने से गुणवती स्त्री, युद्ध से भागने से शूर, और आलस्य करने से शासक पुरुष निकम्मा है ॥१०॥
टिप्पणी: १०−(परिवृक्ता) त्यक्ता। स्वकर्तव्यविरक्ता (च) उपमार्थे (महिषी) मह पूजायाम्-टिषच् ङीप्। पूजनीया गुणवती पत्नी (स्वस्त्या) सुखेन। अनायासेन (च) समुच्चये (युधिंगमः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। युध संप्रहारे-इन् कित्+गम्लृ गतौ-खच्, मुम् च। युधेर्युद्धाद् गमनशीलाः पलायनशीलः (अनाशुरः) शावशेराप्तौ। उ० १।४४। अन्+अशू व्याप्तौ-उरन्, स च णित्। अनाशुः। अशीघ्रः। आलस्यवान् (च) (आयामी) आ+यम वेष्टने नियमने णिच्-णिनि। आ समन्ताद् यामयति नियामयति प्रजागणान्। नियन्ता। शासकः। अन्यद् गतम् ॥