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इ॒ह गावः॒ प्र जा॑यध्वमि॒हाश्वा इ॒ह पूरु॑षाः। इ॒हो स॒हस्र॑दक्षि॒णोपि॑ पू॒षा नि षी॑दति ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इह । गाव: । प्रजायध्वम् । इह । अश्वा: । इह । पूरुषा: ॥ इहो । सहस्रदक्षिण: । अपि । पूषा । नि । सीदति ॥१२७.१२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:127» पर्यायः:0» मन्त्र:12


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

राजा के धर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (गावः) हे गौओ ! तुम (इह) यहाँ पर [इस घर में], (अश्वाः) हे घोड़ो ! तुम (इह) यहाँ पर (पुरुषाः) हे पुरुषो ! तुम (इह) यहाँ पर (प्रजायध्वम्) बढ़ो, (इहो) यहाँ पर (सहस्रदिक्षणः) सहस्रों की दक्षिणा देनेवाला (पूषा) पोषक [गृहपति] (अपि) भी (नि षीदति) बैठता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - उत्तम राजा के प्रबन्ध से गृहस्थ लोग गौओं, घोड़ों और मनुष्यों से वृद्धि करके परस्पर उपकार करें ॥१२॥
टिप्पणी: यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि विवाहप्रकरण में उद्धृत है ॥ १२−(इह) अस्मिन् गृहे (गावः) हे धेनवः (प्रजायध्वम्) प्रवर्धध्वम् (इह) (अश्वाः) हे तुरङ्गाः (इह) (पूरुषाः) हे मनुष्याः (इहो) इह-उ। अत्रैव (सहस्रदक्षिणः) बहुदानस्वभावः (अपि) (पूषा) पोषको गृहपतिः (नि षीदति) उपविशति ॥