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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अभीवस्वः) सब ओर से बसानेवाला, (पक्वः) पका हुआ (यवः) जौ आदि अन्न (पथः) मार्ग से (बिलम्) गढ़े [खत्ती आदि] को (प्र) भले प्रकार (जिहीते) पहुँचता है। (सः जनः) वह मनुष्य (परिक्षितः) सब प्रकार ऐश्वर्यवाले (राज्ञः) राजा के (राष्ट्रे) राज्य में (भद्रम्) आनन्द (एधति) बढ़ाता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - राजा के सुप्रबन्ध से किसान आदि धनवान् लोग अन्न को पक जाने पर यथाविधि एकत्र करके खत्ती आदि में भरें और आवश्यकता पर काम में लाकर सुखी होवें ॥१०॥
टिप्पणी: १०−(अभीवस्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१। अभि+वस निवासे-वप्रत्ययः, छान्दसो दीर्घः। सर्वतो वासयिता (प्र) प्रकर्षेण (जिहीते) ओहाङ् गतौ। गच्छति। प्राप्नोति (यवः) यवादिभक्ष्यपदार्थः (पक्वः) पाकं गतः (पथः) मार्गात् (बिलम्) छिद्रम्। अन्नधारणगर्तम् (जनः) मनुष्यः, (सः) (भद्रम्) आनन्दम् (एधति) एधयति। वर्धयति। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥