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इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृडी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं नः कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र: । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । अव:ऽभि: । सुऽमृडीक: । भवतु । विश्वऽवेदा: ॥ बाधताम् । द्वेष: । अभयम् । न: । कृणोतु । सुऽवीर्यस्य । पतय: । स्याम ॥१२५.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:125» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

राजा के धर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सुत्रामा) बड़ा रक्षक, (स्ववान्) बहुत से ज्ञाति पुरुषोंवाला, (विश्ववेदाः) बहुत धन वा ज्ञानवाला (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (अवोभिः) अनेक रक्षाओं से (सुमृडीकः) अत्यन्त सुख देनेवाला (भवतु) होवे। वह (द्वेषः) वैरियों को (बाधताम्) हटावे, (नः) हमारे लिये (अभयम्) निर्भयता (कृणोतु) करे और हम (सुवीर्यस्य) बड़े पराक्रम के (पतयः) पालन करनेवाले (स्याम) होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजा दुष्ट स्वभावों और दुष्ट लोगों को नाश करके प्रजा की रक्षा करे ॥६॥
टिप्पणी: मन्त्र ६, ७ आचुके हैं-अथ० ७ सू० ९१, ९२ ॥ ६, ७−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अथ० ७ सू० ९१, ९२ ॥