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अम॑न्म॒हीद॑ना॒शवो॑ऽनु॒ग्रास॑श्च वृत्रहन्। सु॒कृत्सु ते॑ मह॒ता शू॑र॒ राध॒सानु॒ स्तोमं॑ मुदीमहि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अमन्महि । इत् । अनाशव: । अनुग्रास: । च । वृत्रऽहन् ॥ सुकृत् । सु । ते । महता । शूर । राधसा । अनु । स्तोमम् । मुदीमहि ॥११६.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:116» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

राजा के कर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्) हे शत्रुनाशक ! [राजन्] (अनाशवः) अनफुरतीले (च) और (अनुग्रासः) अनतेज (इत्) ही (अमन्महि) हम जाने गये हैं। (शूर) हे शूर ! (ते) तेरे (महता) बड़े (राधसा) धन से (स्तोमम् अनु) बड़ाई के साथ (सकृत्) एक बार (सु) भले प्रकार (मदीमहि) हम आनन्द पावें ॥२॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि प्रजा को निरालसी, उद्यमी और बलवान् बनाने के लिये राजकोश से धन का व्यय करे ॥२॥
टिप्पणी: २−(अमन्महि) म० १। ज्ञाता अभूम (इत्) एव (अनाशवः) अशीघ्राः, अत्वरमाणाः (अनुग्रासः) अनुग्राः। निस्तेजसः (च) (वृत्रहन्) शत्रुनाशक राजन् (सकृत्) एकवारम् (सु) (ते) तव (महता) प्रभूतेन (शूर) (राधसा) धनेन (अनु) अनुलक्ष्य (स्तोमम्) स्तुत्यं गुणम् (मुदीमहि) आनन्देम ॥