बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (कण्ववत्) बुद्धिमान् के समान (प्रत्नेन) उस प्राचीन (मन्मना) ज्ञान से (गिरः) अपनी वाणियों को (शुम्भामि) शोभित करता हूँ, (येन) जिस [प्राचीन ज्ञान] से (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (शुष्मम्) बल (इत्) अवश्य (दधे) दिया है ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वरीय ज्ञान वेद से सुशोभित होकर बलवान् होवे ॥२॥
टिप्पणी: २−(अहम्) मनुष्यः (प्रत्नेन) प्राचीनेन (मन्मना) मननसाधनेन ज्ञानेन (गिरः) वाणीः (शुम्भामि) अलं करोमि (कण्ववत्) मेधावी यथा (येन) मन्मना (इन्द्रः) परमेश्वरः (शुष्मम्) बलम् (इत्) अवश्यम् (दधे) दत्तवान् ॥