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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (देवासः) विद्वानों ने (त्रिकद्रुकेषु) तीन [शारीरिक, आत्मिक, और सामाजिक उन्नतियों के] विधानों में (चेतनम्) चेतानेवाले (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] को (अत्नत) फैलाया है। (तम् इत्) उस ही [यज्ञ] को (नः) हमारी (गिरः) विद्याएँ (वर्धन्तु) बढ़ावें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वान् पूर्वज महात्माओं के समान विद्या प्राप्त करके शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(त्रिकद्रुकेषु) अथ० २०।९।१। तिसॄणां शारीरिकात्मिकसामाजिकवृद्धीनां कद्रुकेषु आह्वानेषु विधानेषु (चेतनम्) ज्ञानसाधनम् (देवासः) विद्वांसः (यज्ञम्) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारम् (अत्नत) अतन्वत। विस्तारितवन्तः (तम् इत्) तमेव यज्ञम् (वर्धन्तु) वर्धयन्तु (नः) अस्माकम् (गिरः) विविधविद्याः ॥