वांछित मन्त्र चुनें

इन्द्रा॑य॒ मद्व॑ने सु॒तं परि॑ ष्टोभन्तु नो॒ गिरः॑। अ॒र्कम॑र्चन्तु का॒रवः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्राय । मद्वने । सुतम् । परि । स्तोभन्तु । न: । गिर: ॥ अर्कम् । अर्चन्तु । कारव: ॥११०.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:110» पर्यायः:0» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (मद्वने) आनन्दकारी (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] के लिये (नः) हमारी (गिरः) वाणियाँ (सुतम्) निचोड़े हुए तत्त्व रस का (परि) सब प्रकार (स्तोभन्तु) आदर करें और (कारवः) काम करनेवाले लोग (अर्कम्) उस पूजनीय का (अर्चन्तु) आदर करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों के उत्तम सिद्धान्तों को माने, लोग सदा उसका आदर करें ॥१॥
टिप्पणी: यह तृच ऋग्वेद में है-८।९२ [सायणभाष्य ८१]।१९-२१, सामवेद-उ० १।२। तृच ४ म० १ साम०-पू० २।७।४ ॥ १−(इन्द्राय) परमैश्वर्यवते मनुष्याय (मद्वने) माद्यतेः-क्वनिप्। आनन्दकाय (सुतम्) संस्कृतं तत्त्वरसम् (परि) सर्वतः (स्तोभन्तु) स्तोभतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४। सत्कुर्वन्तु (नः) अस्माकम् (गिरः) वाण्यः (अर्कम्) अर्चनीयम् (अर्चन्तु) पूजयन्तु (कारवः) कर्मकर्तारः ॥