नि तद्द॑धि॒षेऽव॑रे॒ परे॑ च॒ यस्मि॒न्नावि॒थाव॑सा दुरो॒णे। आ स्था॑पयत मा॒तरं॑ जिग॒त्नुमत॑ इन्वत॒ कर्व॑राणि॒ भूरि॑ ॥
पद पाठ
नि । तत् । दधिषे । अवरे । परे । च । यस्मिन् । आविथ । अवसा । दुरोणे ॥ आ । स्थापयत । मातरम् । जिगत्नुम् । अत: । इन्वत । कर्वराणि । भूरि ॥१०७.९॥
अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:107» पर्यायः:0» मन्त्र:9
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (अवरे) छोटे (च) और (परे) बड़े मनुष्य में (तत्) उस [घर] को (नि) निश्चय करके (दधिषे) तूने पोषण किया है, (यस्मिन्) जिस (दुरोणे) कष्ट से भरने योग्य घर में (अवसा) अन्न से (आविथ) तूने रक्षा की है। [हे मनुष्यो !] (जिगत्नुम्) सर्वव्यापक (मातरम्) माता [परमेश्वर] को (आ) भली-भाँति (स्थापयत) [हृदय में] ठहराओ और (अतः) इसी से (भूरि) बहुत से (कर्वराणि) कर्मों को (इन्वत) सिद्ध करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की उपासनापूर्वक अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके अपने सब काम सिद्ध करें ॥९॥
टिप्पणी: ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥