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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (दोधतः) क्रोध करते हुए (वृत्रस्य) रोकनेवाले शत्रु के (शिरः) शिर को (शतपर्वणा) सैकड़ों जोड़ोंवाले, (वृष्णिना) दृढ़ (वज्रेण) वज्र से (चित्) निश्चय करके (वि) अनेक प्रकार (बिभेद) उस [परमेश्वर] ने तोड़ा है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे शूर पुरुष भारी-भारी शस्त्रों से शत्रुओं को मार गिराता है, वैसे ही परमात्मा पापियों को अनेक प्रकार दण्ड देता है ॥३॥
टिप्पणी: ३−(वि) विविधम् (चित्) एव (वृत्रस्य) आवरकस्य शत्रोः (दोधतः) अ० १२।१।८। क्रुध्यतः (वज्रेण) शस्त्रेण (शतपर्वणा) बहुसन्धियुक्तेन (शिरः) (बिभेद) विच्छेद (वृष्णिना) वीर्यवता। दृढेन ॥