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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (तव) तेरे (पौंस्यम्) पुरुषार्थ और (श्रवः) यश को (द्यौः) आकाश और (पृथिवी) पृथिवी (वर्धति) बढ़ाती हैं। (त्वाम्) तुझको (आपः) जलों ने (च) और (पर्वतासः) पहाड़ों ने (हिन्विरे) प्रसन्न किया है ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर को उसके बड़े-बड़े कर्मों से जानकर पुरुषार्थ करें ॥२॥
टिप्पणी: २−(तव) (द्यौः) आकाशः (इन्द्र) हे परमेश्वर (पौंस्यम्) पौरुषम् (पृथिवी) (वर्धति) वर्धयति (श्रवः) यशः (त्वाम्) (आपः) जलानि (पर्वतास) शैलाः (च) (हिन्विरे) प्रीणयन्ति स्म ॥