यो राजा॑ चर्षणी॒नां याता॒ रथे॑भि॒रध्रि॑गुः। विश्वा॑सां तरु॒ता पृत॑नानां॒ ज्येष्ठो॒ यो वृ॑त्र॒हा गृ॒णे ॥
पद पाठ
य: । राजा । चर्षणीनाम् । याता । रथेभि: । अध्रिऽगु: ॥ विश्वासाम् । तरुता । पृतनानाम् । ज्येष्ठ: । य: । वृत्रऽहा । गृणे ॥१०५.४॥
अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:105» पर्यायः:0» मन्त्र:4
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (चर्षणीनाम्) मनुष्यों का (राजा) राजा (रथेभिः) रथी [के समान रमणीय लोकों] के साथ (अध्रिगुः) बे-रोक (याता) चलनेवाला, और (यः) जो (विश्वासाम्) सब (पृतनानाम्) शत्रु सेनाओं का (तरुता) हरानेवाला, (ज्येष्ठः) अतिश्रेष्ठ, (वृत्रहा) अन्धकारनाशक है, [उसकी] (गृणे) मैं स्तुति करता हूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा सब मनुष्य आदि प्राणियों और सूर्य आदि लोकों का स्वामी है, हम उसके गुणों को ग्रहण करके सब कष्टों से बचें ॥४॥
टिप्पणी: मन्त्र ४। आचुके हैं-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥ ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥