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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (नः) हमारे लिये (मित्रः) सबका मित्र [परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष] (शम्) शान्तिदायक, (वरुणः) सब में श्रेष्ठ (शम्) शान्तिदायक, (विष्णुः) सब गुणों में व्यापक (शम्) शान्तिदायक, (प्रजापतिः) प्रजापति [प्रजाओं का रक्षक] (शम्) शान्दिदायक [होवें]। (नः) हमारे लिये (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान्, (बृहस्पतिः) बड़ी वेदविद्या का रक्षक (शम्) शान्तिदायक, (नः) हमारे लिये (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेवाला [न्यायकारी परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष] (शम्) शान्तिदायक (भवतु) होवे ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे सर्वहितकारी, सर्वश्रेष्ठ, सर्वगुणविशिष्ट परमेश्वर सब जगत् की रक्षा करता है, वैसे ही विद्वान् जन परस्पर स्नेह करके संसार का उपकार करें ॥६॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।९०।९ और यजुर्वेद−३६।९ ॥ ६−(शम्) सुखकारी (नः) अस्मभ्यम् (मित्रः) ञिमिदा स्नेहने-क्त्र। सर्वस्नेही परमेश्वरो विद्वान् वा (शम्) (वरुणः) सर्वोत्कृष्टः (शम्) (विष्णुः) सर्वगुणेषु व्यापकः (शम्) (प्रजापतिः) प्रजानां पालकः (शम्) (नः) (इन्द्रः) परमैश्वर्ययुक्तः (बृहस्पतिः) बृहत्या वाचो विद्यायाः पतिः पालकः (शम्) (नः) (भवतु) (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरो मनुष्यो वा ॥