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इ॒मानि॒ यानि॒ पञ्चे॑न्द्रि॒याणि॒ मनः॑षष्ठानि मे हृ॒दि ब्रह्म॑णा॒ संशि॑तानि। यैरे॒व स॑सृ॒जे घो॒रं तैरे॒व शान्ति॑रस्तु नः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इमानि। यानि। पञ्च। इन्द्रियाणि। मनःऽषष्ठानि। मे। हृदि। ब्रह्मणा। सम्ऽशितानि। यैः। एव। ससृजे। घोरम्। तैः। एव। शान्तिः। अस्तु। नः ॥९.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:9» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इमानि) ये (यानि) जो (मनःषष्ठानि) छठे मन सहित (पञ्च) पाँच (इन्द्रियाणि) इन्द्रियाँ [कान, नेत्र, नासिका, जिह्वा और त्वचा ज्ञानेन्द्रियाँ] (मे) मेरे (हृदि) हृदय में (ब्रह्मणा) वेदज्ञान से (संशितानि) तीक्ष्ण की गयी हैं। और (यैः) जिन [इन्द्रियों] के द्वारा (एव) ही (घोरम्) घोर [भयङ्कर पाप] (ससृजे) उत्पन्न हुआ है, (तैः) उन के द्वारा (एव) ही (नः) हमारे लिये (शान्तिः) शान्ति [धैर्य्य, आनन्द] (अस्तु) होवे ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो मन और सब ज्ञानेन्द्रियाँ वेदज्ञान से तेजस्वी हुए हैं, यदि उनके विकार से कोई पाप घटना हो जावे तो विद्वान् पुरुष उसे सुधारकर आपस में सुख भोगें ॥५॥
टिप्पणी: ५−(इमानि) दृश्यमानानि (यानि) (पञ्च) (इन्द्रियाणि) श्रोत्रनेत्रनासिकाजिह्वात्वग्रूपाणि ज्ञानेन्द्रियाणि (मनःषष्ठानि) मनः षष्ठं येषां तानि (मे) मम (हृदि) हृदये (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (संशितानि) तीक्ष्णीकृतानि (यैः) इन्द्रियैः (तैः) इन्द्रियैः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३ ॥