वांछित मन्त्र चुनें

यानि॒ नक्ष॑त्राणि दि॒व्यन्तरि॑क्षे अ॒प्सु भूमौ॒ यानि॒ नगे॑षु दि॒क्षु। प्र॑क॒ल्पयं॑श्च॒न्द्रमा॒ यान्येति॒ सर्वा॑णि॒ ममै॒तानि॑ शि॒वानि॑ सन्तु ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यानि। नक्षत्राणि। दिवि। अन्तरिक्षे। अप्ऽसु। भूमौ। यानि। नगेषु। दिक्षु। प्रऽकल्पयन्। चन्द्रमाः। यानि। एति। सर्वाणि। मम। एतानि। शिवानि। सन्तु ॥८.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:8» पर्यायः:0» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सुख की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यानि) जिन (नक्षत्राणि) नक्षत्रों [चलनेवाले लोकों] को (दिवि) आकाश के भीतर (अन्तरिक्षे) मध्यलोक में, (यानि) जिन [नक्षत्रों] को (अप्सु) जल के ऊपर और (भूमौ) भूमि के ऊपर और (यानि) जिन [नक्षत्रों] को (नगेषु) पहाड़ों के ऊपर (दिक्षु) सब दिशाओं में (चन्द्रमा) चन्द्रमा (प्रकल्पयन्) समर्थ करता हुआ (याति) चलता है, (एतानि) यह (सर्वाणि) सब [नक्षत्र] (मम) मेरे (शिवानि) सुख देनेहारे (सन्तु) होवें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो नक्षत्र [सूक्त ७] अपने तारागणों के साथ चन्द्रमा के आकर्षण और गति मार्ग में घूमकर वायु द्वारा जल पृथिवी आदि पर प्रभाव डालकर अन्न स्वास्थ्य आदि बढ़ाने का कारण हैं, विद्वान् लोग उन नक्षत्रों के ज्योतिष ज्ञान से दूरदर्शी होकर विघ्नों को हटाकर सुख पावें ॥१॥
टिप्पणी: १−(यानि) (नक्षत्राणि) गमनशीलान् लोकान् (दिवि) आकाशे (अन्तरिक्षे) मध्यलोके (अप्सु) उदकानामुपरि (भूमौ) भूमेरुपरि (यानि) नक्षत्राणि (नगेषु) पर्वतानामुपरि (दिक्षु) सर्वासु दिक्षु (प्रकल्पयन्) समर्थानि कुर्वन्। प्रोत्साहयन् (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (यानि) नक्षत्राणि (एति) गच्छति (सर्वाणि) (मम) (एतानि) नक्षत्राणि (शिवानि) सुखकराणि (सन्तु) भवन्तु ॥