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स्तु॒ता मया॑ वर॒दा वे॑दमा॒ता प्र चो॑दयन्तां पावमा॒नी द्वि॒जाना॑म्। आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शुं की॒र्तिं द्रवि॑णं ब्रह्मवर्च॒सम्। मह्यं॑ द॒त्त्वा व्र॑जत ब्रह्मलो॒कम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तुता। मया। वरदा। वेदऽमाता। प्र। चोदयन्ताम्। पावमानी। द्विजानाम्। आयुः। प्राणम्। प्रऽजाम्। पशुम्। कीर्तिम्। द्रविणम्। ब्रह्मऽवर्चसम्। मह्यम्। दत्त्वा। व्रजत। ब्रह्मऽलोकम् ॥७१.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:71» पर्यायः:0» मन्त्र:1


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सब सुख पाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (वरदा) वर [इष्ट फल] देनेवाली (वेदमाता) ज्ञान की माता [वेदवाणी] (मया) मुझ करके (स्तुता) स्तुति की गयी है, [आप विद्वान् लोग] (पावमानी) शुद्ध करनेवाले [परमात्मा] की बतानेवाली [वेदवाणी] को (द्विजानाम्) द्विजों [ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों] में (प्र चोदयन्ताम्) आगे बढ़ावें। [हे विद्वानों !] (आयुः) जीवन, (प्राणम्) प्राण [आत्मबल], (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान आदि], (पशुम) पशु [गौ आदि], (कीर्तिम्) कीर्ति, (द्रविणम्) धन और (ब्रह्मवर्चसम्) वेदाभ्यास का तेज (मह्यम्) मुझको (दत्त्वा) देकर [हमें] (ब्रह्मलोकम्) ब्रह्मलोक [वेदज्ञानियों के समाज] में (व्रजत) पहुँचाओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वान् आचार्यों के द्वारा आदर के साथ वेदवाणी का निरन्तर अभ्यास करके सर्वोन्नति से कीर्तिमान् होते हुए ब्रह्मज्ञानियों में प्रतिष्ठा पावें ॥१॥
टिप्पणी: १−(स्तुता) प्रशंसिता (मया) उपासकेन (वरदा) इष्टफलदात्री (वेदमाता) वेदस्य ज्ञानस्य निर्मात्री वेदवाणी (प्र चोदयन्ताम्) प्रेरयन्तां विद्वांसः (पावमानीः) पवमान-अण्, ङीप्। द्वितीयार्थे प्रथमा। पवमानस्य शोधकस्य परमेश्वरस्य प्रतिपादिकां वेदवाणीम् (द्विजानाम्) ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यानां मध्ये (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) सन्तानादिकम् (पशुम्) गवादिकम् (कीर्तिम्) यशः (द्रविणम्) धनम् (ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्मवर्चस्-अच्। वेदाभ्यासेन तेजः (मह्यम्) उपासकाय (दत्त्वा) (व्रजत) अन्तर्गतण्यर्थः। व्राजयत। प्रापयत। अस्मान् (ब्रह्मलोकम्) ब्रह्मणां वेदज्ञातॄणां समाजम् ॥