वांछित मन्त्र चुनें

चि॒त्राणि॑ सा॒कं दि॒वि रो॑च॒नानि॑ सरीसृ॒पाणि॒ भुव॑ने ज॒वानि॑। तु॒र्मिशं॑ सुम॒तिमि॒च्छमा॑नो॒ अहा॑नि गी॒र्भिः स॑पर्यामि॒ नाक॑म् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चित्राणि। साकम्। दिवि। रोचनानि। सरीसृपाणि। भुवने। जवानि। तुर्मिशम्। सुऽमतिम्। इच्छमानः। अहानि। गीःऽभिः। सपर्यामि। नाकम् ॥७.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:7» पर्यायः:0» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ज्योतिष विद्या का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवि) आकाश के बीच (भुवने) संसार में (चित्राणि) विचित्र, (साकम्) परस्पर (सरीसृपाणि) टेढ़े-टेढ़े चलनेवाले, (जवानि) वेग गतिवाले (रोचनानि) चमकते हुए नक्षत्र हैं। (तुर्मिशम्) वेग की ध्वनि [वा समाधि] को और (सुमतिम्) सुमति को (इच्छमानः) चाहता हुआ मैं (अहानि) सब दिन (गीर्भिः) वेदवाणियों से (नाकम्) सुखस्वरूप परमात्मा को (सपर्यामि) पूजता हूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - जैसे परस्पर आकर्षण से शीघ्र गति के साथ चलकर यह तारागण संसार का उपकार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परमात्मा की महिमा को वेद द्वारा गाते हुए परस्पर मेल करके शीघ्रता के साथ सुमति से अपना कर्त्तव्य करते रहें ॥१॥
टिप्पणी: १−(चित्राणि) विचित्राणि। अद्भुतानि (साकम्) सह। परस्परम् (दिवि) आकाशे। सूर्यप्रकाशे (रोचनानि) रुच दीप्तावभिप्रीतौ च−युच्। दीप्यमानानि नक्षत्राणि (सरीसृपाणि) सृपेर्यङ्लुगन्तात् पचाद्यच्। नित्यं कौटिल्ये गतौ। पा० ३।१।२३। इति कौटिल्ये−यङ्। वक्रगतीनि (भुवने) संसारे (जवानि) शीघ्रगामीनि। अनुक्षणमावर्त्तमानानि (तुर्मिशम्) तुर त्वरणे-क्विप्+मिश शब्दे रोषकृते समाधौ च-क प्रत्ययः। तुरो वेगस्य मिशं ध्वनिं समाधिं वा (सुमतिम्) कल्याणबुद्धिम् (इच्छमानः) इच्छन्। कामयमानः (अहानि) कालसंयोगे द्वितीया। सर्वाणि दिनानि (गीर्भिः) वेदवाग्भिः (सपर्यामि) परिचरामि-निघ० ३।५। अहं सेवे (नाकम्) सुखस्वरूपं परमात्मानम् ॥