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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
जीवन बढ़ाने के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] तुम (जीवाः) जीनेवाले (स्थ) हो, (जीव्यासम्) मैं जीता रहूँ, (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु (जीव्यासम्) मैं जीता रहूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को विद्वानों के समान जीवनभर स्वतन्त्र पुरुषार्थ करना चाहिये ॥१॥
टिप्पणी: १−(जीवाः) जीवनवन्तः (स्थ) भवथ (जीव्यासम्) जीवनवान् भूयासम् (सर्वम्) सम्पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (जीव्यासम्) ॥