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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
जीवन के स्वास्थ्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (शतात्) सौ से (भूयसीः) अधिक (शरदः) वर्षों तक [हम देखते रहें, जीते रहें, इत्यादि] ॥८॥
भावार्थभाषाः - हम सब लोग प्रयत्न करें कि परमेश्वर की प्रार्थना सदा करते हुए युक्त आहार-विहार से ऐसे स्वस्थ और नीरोग रहें कि सब इन्द्रियाँ नेत्र, मुख, नासिका, मन आदि सौ वर्ष से भी अधिक पूरे दृढ़ और सचेत रहें, जिससे हम अपना कर्तव्य जीवनभर सावधानी के साथ किया करें ॥१-८॥ मन्त्र १ तथा २ ऋग्वेद में हैं-७।६६।१६ और सब सूक्त कुछ भेद से यजुर्वेद में है-३६।२४ ॥
टिप्पणी: ८−(भूयसीः) अधिकतराः (शरदः) वर्षाणि (शतात्) शतसंख्याकात् ॥