बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शरीर के स्वास्थ्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्वोः) दोनों जङ्घाओं में (ओजः) सामर्थ्य (जङ्घयोः) दोनों घुटनों [पिण्डलियों वा नीचे की जाँघों] में (जवः) वेग, (पादयोः) दोनों पैरों में (प्रतिष्ठा) जमाव [दृढ़ता], (मे) मेरे (सर्वा) सब [अङ्ग] (अरिष्टानि) निर्दोष और (आत्मा) आत्मा (अनिभृष्टः) बिना नीचे गिरा हुआ [होवे] ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित आहार-विहार, व्यायाम, योगाभ्यास आदि से अपने शरीर और आत्मा दृढ़ रखने चाहिएँ ॥१, २॥
टिप्पणी: मन्त्र २ में (प्रतिष्ठा अरिष्टानि) पदों में सन्धि न होने से जाना जाता है कि (पादयोः) पर अवसान होने के स्थान में (प्रतिष्ठा) पर अवसान होना चाहिये ॥ २−(ऊर्वोः) जानूपरिभागयोः (ओजः) सामर्थ्यम् (जङ्घयोः) गुल्फजान्वोरन्तरालयोः (जवः) वेगः (पादयोः) चरणयोः (प्रतिष्ठा) स्थिरता। दृढता (अरिष्टानि) निर्दोषाणि (मे) मम (सर्वा) सर्वाणि अङ्गानि (आत्मा) जीवात्मा (अनिभृष्टः) भृश अधःपतने-क्त। अनधोगतः ॥