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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सृष्टिविद्या का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस [पुरुष] की (तावन्तः) उतनी [पूर्वोक्त] (महिमानः) महिमाएँ हैं, (च) और (पुरुषः) यह पुरुष [परिपूर्ण परमात्मा] (ततः) उन [महिमाओं] से (ज्यायान्) अधिक बड़ा है। (अस्य) इस [ईश्वर] का (पादः) पाव [चौथायी अंश] (विश्वा) सब (भूतानि) चराचर पदार्थ हैं, और (अस्य) इस [ईश्वर] का (पादः) पाव [चौथायी अंश] (विश्वा) सब (भूतानि) चराचर पदार्थ हैं, और (अस्य) इस [परमेश्वर] का (अमृतम्) अविनाशी महत्त्व (दिवि) [उसके] प्रकाशस्वरूप में (त्रिपात्) तीन पाव [तीन चौथाई] वाला है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो ईश्वर के चार अंश माने जावें तो अनेक सूर्य, पृथिवी आदि चराचर विचित्र रचनावाला इतना बड़ा जगत् ईश्वर के सामर्थ्य का एक चौथाई अर्थात् बहुत थोड़ा अंश है और उसका अविनाशी सामर्थ्य जगत् की अपेक्षा तीन चौथायी अर्थात् बहुत महान् है ॥३॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।३, यजुर्वेद−३१।३, सामवेद−पू० ६।१३।६ ॥ ३−(तावन्तः) पूर्वोक्तपरिमाणाः (अस्य) पुरुषस्य (महिमानः) महत्त्वानि (ततः) तेभ्यो महिमभ्यः (ज्यायान्) प्रवृद्धतरः (पुरुषः) म० १। परिपूर्णः परमेश्वरः (पादः) एकोंऽशः (अस्य) पुरुषस्य (विश्वा) सर्वाणि (भूतानि) सत्तावन्ति पदार्थजातानि (त्रिपात्) संख्यासुपूर्वस्य। पा० ५।४।१४०। इति पादस्य लोपो बहुव्रीहौ। त्रयः पादा अंशा यस्य तत् (अस्य) पुरुषस्य (अमृतम्) नाशरहितं महत्त्वम् (दिवि) प्रकाशस्वरूपे ॥