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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सृष्टिविद्या का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मात्) उस (यज्ञात्) पूजनीय (सर्वहुतः) सब के दाता [अन्न आदि देनेहारे] [पुरुष परमात्मा] से (ऋचः) ऋग्वेद [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्या] के मन्त्र और (सामानि) सामवेद [मोक्षविद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। (तस्मात्) उससे (ह) ही (छन्दः) अथर्ववेद [आनन्ददायक विद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए, और (तस्मात्) उस से (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का ज्ञान] (अजायत) उत्पन्न हुआ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जिस परमात्मा ने संसार के हित के लिये ऋग्वेदादि चार वेद प्रकाशित किये हैं, सब मनुष्य उन वेदों के अनुकूल चलकर उसकी भक्ति करें ॥१३॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।९ और यजुर्वेद ३१।७ ॥ १३−(तस्मात्) पूर्वोक्तात् पुरुषात् (यज्ञात्) पूजनीयात् (सर्वहुतः) हु दानादानादनेषु-क्विप्। सर्वेभ्योऽन्नादिदातुः सकाशात् (ऋचः) ऋग्वेदस्य पदार्थगुणप्रकाशिकाया विद्याया मन्त्राः (सामानि) सामवेदस्य मोक्षज्ञानस्य मन्त्राः (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (छन्दः) जसः सुः। छन्दांसि। अथर्ववेदस्य आह्लादकज्ञानस्य मन्त्राः (ह) निश्चयेन (जज्ञिरे) (तस्मात्) (यजुः) यजुर्वेदः। सत्कर्मणां ज्ञानम् (अजायत) ॥