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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सृष्टिविद्या का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मात्) उस [पुरुष परमात्मा] से (अश्वाः) घोड़े (अजायन्त) उत्पन्न हुए, (च च) और [अन्य गदहा खच्चर आदि भी] (ये) जो (के) कोई (उभयादतः) दोनों ओर [नीचे ऊपर] दातोंवाले हैं। (तस्मात्) उससे (ह) ही (गावः) गौएँ बैल [एक ओर दाँतवाले पशु] (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए, (तस्मात्) उससे (अजावयः) बकरी भेड़ (जाताः) उत्पन्न हुए ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जिस परमेश्वर ने घोड़े, गदहे, गौ, बैल, बकरी, भेड़ आदि उपकारी पशु उत्पन्न किये हैं, सब मनुष्य उसकी आज्ञा का पालन करते रहें ॥१२॥
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में हैं−१०।९०।१० और यजुर्वेद−३१।८ ॥ १२−(तस्मात्) पुरुषात् (अश्वाः) तुरङ्गाः (अजायन्त) उत्पन्नाः (ये) (के) (च) गर्दभखचरादयः (उभयादतः) छन्दसि च। पा० ५।४।१४२। दन्तस्य दतृभावः। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ६।३।१३७। इति दीर्घः। ऊर्ध्वाधोभागयोरुभयोर्दन्तयुक्ताः (गावः) धेनुवृषभाः (ह) एव (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (तस्मात्) (तस्मात्) (जाताः) (अजावयः) अजाश्वावयश्च ॥