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तं य॒ज्ञं प्रा॒वृषा॒ प्रौक्ष॒न्पुरु॑षं जा॒तम॑ग्र॒शः। तेन॑ दे॒वा अ॑यजन्त सा॒ध्या वस॑वश्च॒ ये ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। यज्ञम्। प्रावृषा। प्र। औक्षन्। पुरुषम्। जातम्। अग्रऽशः। तेन। देवाः। अयजन्तः। साध्याः। वसवः। च। ये ॥६.११॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:6» पर्यायः:0» मन्त्र:11


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सृष्टिविद्या का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवाः) विद्वान् लोग (साध्याः) साधन करनेवाले [योगाभ्यासी] (च) और (वसवः) श्रेष्ठ गुणवाले हैं, उन्होंने (प्रावृषा) बड़े ऐश्वर्य के साथ [वर्तमान] (तम्) उस (यज्ञम्) पूजनीय, (अग्रशः) पहिले से [सृष्टि के पूर्व से] (जातम्) प्रसिद्ध (पुरुषम्) पुरुष [पूर्ण परमात्मा] को (तेन) उस [पुण्य कर्म] से (प्र) भले प्रकार (औक्षन्) सींचा [स्वच्छ किया, खोजा] और (अयजन्त) पूजा ॥११॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग योगाभ्यास आदि तप के साथ पुण्य कर्म करके परमात्मा को खोजें और पूजें ॥११॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।७ और यजुर्वेद−३१।९ ॥ ११−(तम्) पूर्वोक्तम् (यज्ञम्) पूजनीयम् (प्रावृषा) प्र+वृषु प्रजननैश्वर्ययोः-क्विप्। नहिवृतिवृषि०। पा० ६।३।११६। पूर्वपदस्य दीर्घः। प्रकृष्टैश्वर्येण सह वर्तमानम् (प्र) प्रकर्षेण (औक्षन्) उक्ष सेचने। उक्षण उक्षतेर्वृद्धिकर्मणः-निरु० १२।९। असिञ्चन्। हृदये शोधितवन्तः। अन्वेषणेन प्राप्तवन्तः (पुरुषम्) पूर्णं परमात्मानम् (जातम्) प्रसिद्धम् (अग्रशः) अग्रतः सृष्टेः प्राक् (तेन) पूर्वोक्तेन पुण्यकर्मणा (देवाः) विद्वांसः (अयजन्त) पूजितवन्तः (साध्याः) अ० ७।५।१। साधनवन्तः। योगाभ्यासिनः (वसवः) श्रेष्ठाः पुरुषाः (च) (ये) ॥