आ दे॒वाना॒मपि॒ पन्था॑मगन्म॒ यच्छ॒क्नवा॑म॒ तद॑नु॒प्रवो॑ढुम्। अ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्स य॑जा॒त्स इद्धोता॒ सोऽध्व॒रान्त्स ऋ॒तून्क॑ल्पयाति ॥
पद पाठ
आ। देवानाम्। अपि। पन्थाम्। अगन्म। यत्। शक्नवाम। तत्। अनुऽप्रवोढुम्। अग्निः। विद्वान्। सः। यजात्। सः। इत्। होता। सः। अध्वरान्। सः। ऋतून्। कल्पयाति ॥५९.३॥
अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:59» पर्यायः:0» मन्त्र:3
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (देवानाम्) विद्वानों के (अपि) ही (पन्थाम्) मार्ग को (आ) सब ओर से (अगन्म) हम प्राप्त हुए हैं (तत्) उस [श्रेष्ठ कर्म] को (अनुप्रवोढुम्) लगातार ले चलने के लिये (यत्) जो कुछ (शक्नवाम) समर्थ होवें। (सः) वह (विद्वान्) विद्वान् (अग्निः) अग्नि [ज्ञानी परमात्मा] (यजात्) [बल] देवे, (सः इत्) वह ही (होता) दाता है, (सः) वह (अध्वरान्) हिंसारहित व्यवहारों को, (सः) वही (ऋतून्) ऋतुओं [अनुकूल समयों] को (कल्पयाति) समर्थ करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के परीक्षित वैदिक मार्ग पर चलें। और सबको चलावें ॥३॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।२।३ ॥ ३−(आ) समन्तात् (देवानाम्) विदुषाम् (अपि) एव (पन्थाम्) पन्थानम् (अगन्म) वयं प्राप्तवन्तः (यत्) कर्म कर्तुम् (शक्नवाम) शक्नुयाम। समर्थो भवेम (तत्) श्रेष्ठं कर्म (अनुप्रवोढुम्) निरन्तरं प्रापयितुम् (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (विद्वान्) (सः) प्रसिद्धः (यजात्) लेटि रूपम्। यजेत् दद्यात् बलम् (सः) परमेश्वरः (इत्) एव (होता) दाता (अध्वरान्) हिंसारहितान् यज्ञान् (सः) (ऋतून्) अनुकूलकालान् (कल्पयाति) समर्थयेत् ॥