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देवता: अग्निः ऋषि: ब्रह्मा छन्द: गायत्री स्वर: यज्ञ सूक्त

त्वम॑ग्ने व्रत॒पा अ॑सि दे॒व आ मर्त्ये॒ष्वा। त्वं य॒ज्ञेष्वीड्यः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अग्ने। व्रतऽपाः। असि। देवः। आ। मर्त्येषु। आ। त्वम्। यज्ञेषु। ईड्यः॥५९.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:59» पर्यायः:0» मन्त्र:1


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानवान् परमेश्वर ! [वा विद्वान् पुरुष] (त्वम्) तू (मर्त्येषु) मनुष्यों के बीच (व्रतपाः) नियम का पालन करनेवाला (आ) और (देवः) व्यवहारकुशल, (त्वम्) तू (यज्ञेषु) यज्ञों [संयोग-वियोग व्यवहारों] में (आ) सब प्रकार (ईड्यः) स्तुति के योग्य (असि) है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमात्मा नियमों के पालन से संयोग-वियोग करके अनेक रचनाएँ करता है, वैसे ही मनुष्य उत्तम नियमों पर चलकर योग्य कर्मों के संयोग और कुयोग्यों के वियोग से उत्तम व्यवहार सिद्ध करें ॥१॥
टिप्पणी: यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।११।१ और यजु० ४।१६ ॥ १−(त्वम्) (अग्ने) हे विद्वन् परमात्मन् मनुष्य वा (व्रतपाः) नियमपालकः (असि) (देवः) व्यवहारकुशलः (आ) चार्थे (मर्त्येषु) मनुष्येषु (आ) समन्तात् (त्वम्) (यज्ञेषु) संयोगवियोगव्यवहारेषु (ईड्यः) स्तुत्यः ॥