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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
बुरे स्वप्न दूर करने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (कलाम्) सोलहवें अंश को और (यथा) जैसे (शफम्) आठवें अंश को और (यथा) जैसे (ऋणम्) [पूरे] ऋण को (संनयन्त) लोग चुकाते हैं। (एव) वैसे ही (सर्वम्) सब (दुःष्वप्न्यम्) नींद में उठे बुरे विचार को (अप्रिये) अप्रिय पुरुष पर (सम् नयामसि) हम छोड़ते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य ऋण को थोड़ा-थोड़ा करके वा सब एक साथ चुकाते हैं, वैसे ही मनुष्य कुस्वप्न आदि रोगों से निवृत्ति पावें ॥१॥
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ६।४६।३ और ऋग्वेद में भी है-८।४७।१७ ॥ १−(यथा) येन प्रकारेण (कलाम्) षोडशांशम् (यथा) (शफम्) गवादिपादचतुष्टयस्य द्विखुरत्वाद् एकस्य खुरस्याष्टमांशग्रहणम्। अष्टमांशम् (यथा) (ऋणम्) पुनर्देयत्वेन गृहीतं धनम् (संनयन्ति) सम्यग् गमयन्ति। प्रत्यर्पयन्ति (एव) एवम् (दुःष्वप्न्यम्) कुनिद्राभवं विचारम् (सर्वम्) (अप्रिये) अहिते। शत्रौ (संनयामसि) संनयामः। स्थापयामः ॥