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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (कालः) काल ने (यज्ञम्) यज्ञ [सत्कर्म] को (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (अक्षितम्) अक्षय (भागम्) भाग (सम्) पूरा-पूरा (ऐरयत्) भेजा है। (काले) काल में (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी पर धरे हुए पदार्थ] और अप्सराएँ [आकाश में चलनेवाले पदार्थ], और (काले) काल में (लोकाः) सब लोक (प्रतिष्ठिताः) रक्खे हुए हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - समय के उपयोग से विद्वान् लोग सत्कर्म करके सद्गति पाते हैं और काल में ही संसार के सब पदार्थ ठहरे हैं ॥४॥
टिप्पणी: ४−(कालः) (यज्ञम्) सद्व्यवहारम् (सम्) सम्यक् (ऐरयत्) प्रेरितवान् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (भागम्) अंशम् (अक्षितम्) अक्षीणम् (काले) (गन्धर्वाप्सरसः) अ० १९।३६।६। गवि पृथिव्यां धृताः पदार्थाः अप्सु आकाशे सरणशीलाश्च पदार्थाः (काले) (लोकाः) सूर्यादयः (प्रतिष्ठिताः) दृढं स्थिताः ॥