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देवता: कालः ऋषि: भृगुः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: काल सूक्त

का॒लो य॒ज्ञं समै॑रयद्दे॒वेभ्यो॑ भा॒गमक्षि॑तम्। का॒ले ग॑न्धर्वाप्स॒रसः॑ का॒ले लो॒काः प्रति॑ष्ठिताः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कालः। यज्ञम्। सम्। ऐरयत्। देवेभ्यः। भागम्। अक्षितम्। काले। गन्धर्वऽअप्सरसः। काले। लोकाः। प्रतिऽस्थिताः ॥५४.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:54» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काल की महिमा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कालः) काल ने (यज्ञम्) यज्ञ [सत्कर्म] को (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (अक्षितम्) अक्षय (भागम्) भाग (सम्) पूरा-पूरा (ऐरयत्) भेजा है। (काले) काल में (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी पर धरे हुए पदार्थ] और अप्सराएँ [आकाश में चलनेवाले पदार्थ], और (काले) काल में (लोकाः) सब लोक (प्रतिष्ठिताः) रक्खे हुए हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - समय के उपयोग से विद्वान् लोग सत्कर्म करके सद्गति पाते हैं और काल में ही संसार के सब पदार्थ ठहरे हैं ॥४॥
टिप्पणी: ४−(कालः) (यज्ञम्) सद्व्यवहारम् (सम्) सम्यक् (ऐरयत्) प्रेरितवान् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (भागम्) अंशम् (अक्षितम्) अक्षीणम् (काले) (गन्धर्वाप्सरसः) अ० १९।३६।६। गवि पृथिव्यां धृताः पदार्थाः अप्सु आकाशे सरणशीलाश्च पदार्थाः (काले) (लोकाः) सूर्यादयः (प्रतिष्ठिताः) दृढं स्थिताः ॥