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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (कालेन) काल [समय] के साथ (वातः) पवन (पवते) शुद्ध करता है, (कालेन) काल के साथ (पृथिवी) पृथिवी (मही) बड़ी है। (काले) काल में (मही) बड़ा (द्यौः) आकाश (आहिता) रक्खा है ॥२॥
भावार्थभाषाः - समय के कारण वायु, पृथिवी, आकाश आदि के परमाणु संयोग पाकर साकार होकर संसार का उपकार करते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(कालेन) (वातः) वायुः (पवते) पुनाति। शोधयति (कालेन) (पृथिवी) (मही) महती वर्तते (द्यौः) आकाशः (मही) महती (काले) (आहिता) स्थापिता ॥