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का॒लेन॒ वातः॑ पवते का॒लेन॑ पृथि॒वी म॒ही। द्यौर्म॒ही का॒ल आहि॑ता ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कालेन। वातः। पवते। कालेन। पृथिवी। मही। द्यौः। मही। काले। आऽहिता ॥५४.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:54» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काल की महिमा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कालेन) काल [समय] के साथ (वातः) पवन (पवते) शुद्ध करता है, (कालेन) काल के साथ (पृथिवी) पृथिवी (मही) बड़ी है। (काले) काल में (मही) बड़ा (द्यौः) आकाश (आहिता) रक्खा है ॥२॥
भावार्थभाषाः - समय के कारण वायु, पृथिवी, आकाश आदि के परमाणु संयोग पाकर साकार होकर संसार का उपकार करते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(कालेन) (वातः) वायुः (पवते) पुनाति। शोधयति (कालेन) (पृथिवी) (मही) महती वर्तते (द्यौः) आकाशः (मही) महती (काले) (आहिता) स्थापिता ॥