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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (कालात्) काल [गिनती करनेवाले समय] से (आपः) प्रजाएँ, (कालात्) काल से (ब्रह्म) वेदज्ञान, (तपः) तप [ब्रह्मचर्यादि नियम] और (दिशः) दिशाएँ (सम् अभवत्) उत्पन्न हुई हैं। (कालेन) काल के साथ (सूर्यः) सूर्य (उत् एति) निकलता है, (काले) काल में (पुनः) फिर (नि विशते) डूब जाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - समय के प्रभाव से प्रलय के पीछे परमात्मा सब पदार्थों और नियमों को उत्पन्न करता और प्रलय समय में लय कर देता है, जैसे सूर्य पृथिवी के सन्मुख होने से दिखाई देता और पृथिवी की आड़ में होने से अदृश्य हो जाता है ॥१॥
टिप्पणी: १−(कालात्) सू० ५३। म० १। संख्याकारकात् समयात् (आपः) आप्ताः प्रजाः (सम् अभवन्) अजायन्त (कालात्) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (तपः) ब्रह्मचर्यादिव्रतम् (दिशः) प्राच्याद्याः (कालेन) (उदेति) उदयं गच्छति (सूर्यः) गमनशील आदित्यः (काले) (नि) नीचैः (विशते) प्रविश्यते। विलीयते (पुनः) सायङ्काले ॥