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देवता: कालः ऋषि: भृगुः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: काल सूक्त

का॒ले मनः॑ का॒ले प्रा॒णः का॒ले नाम॑ स॒माहि॑तम्। का॒लेन॒ सर्वा॑ नन्द॒न्त्याग॑तेन प्र॒जा इ॒माः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

काले। मनः। काले। प्राणः। काले। नाम। सम्ऽआहितम्। कालेन। सर्वाः। नन्दन्ति। आऽगतेन। प्रऽजाः। इमाः ॥५३.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:53» पर्यायः:0» मन्त्र:7


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काल की महिमा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (काले) काल में (मनः) मन, (काले) काल में (प्राणः) प्राण, (काले) काल में (नाम) नाम (समाहितम्) संग्रह किया गया है। (आगतेन) आये हुए (कालेन) काल के साथ (इमाः) यह (सर्वाः) सब (प्रजाः) प्रजाएँ (नन्दन्ति) आनन्द पाती हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - काल के उत्तम उपयोग से मन और प्राण अर्थात् सब इन्द्रियों का स्वास्थ्य और यश बढ़ता है, तब ही सब प्राणी सुख पाते हैं ॥७॥
टिप्पणी: ७−(काले) (मनः) अन्तःकरणम् (काले) (प्राणः) श्वासः (काले) (नाम) नामधेयम्। यशः (समाहितम्) संगृहीतं वर्तते (कालेन) (सर्वाः) समस्ताः (नन्दति) संतुष्यन्ति (आगतेन) प्राप्तेन (प्रजाः) विविधसृष्टि-पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः ॥