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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (काले) काल में (मनः) मन, (काले) काल में (प्राणः) प्राण, (काले) काल में (नाम) नाम (समाहितम्) संग्रह किया गया है। (आगतेन) आये हुए (कालेन) काल के साथ (इमाः) यह (सर्वाः) सब (प्रजाः) प्रजाएँ (नन्दन्ति) आनन्द पाती हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - काल के उत्तम उपयोग से मन और प्राण अर्थात् सब इन्द्रियों का स्वास्थ्य और यश बढ़ता है, तब ही सब प्राणी सुख पाते हैं ॥७॥
टिप्पणी: ७−(काले) (मनः) अन्तःकरणम् (काले) (प्राणः) श्वासः (काले) (नाम) नामधेयम्। यशः (समाहितम्) संगृहीतं वर्तते (कालेन) (सर्वाः) समस्ताः (नन्दति) संतुष्यन्ति (आगतेन) प्राप्तेन (प्रजाः) विविधसृष्टि-पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः ॥