वांछित मन्त्र चुनें
देवता: कालः ऋषि: भृगुः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: काल सूक्त

का॒लो भू॒तिम॑सृजत का॒ले तप॑ति॒ सूर्यः॑। का॒ले ह॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ का॒ले चक्षु॒र्वि प॑श्यति ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कालः। भूतिम्। असृजत। काले। तपति। सूर्यः। काले। ह। विश्वा। भूतानि। काले । चक्षुः। वि। पश्यति ॥५३.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:53» पर्यायः:0» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काल की महिमा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कालः) काल [समय] ने (भूतिम्) ऐश्वर्य को (असृजत) उत्पन्न किया है, (काले) काल में (सूर्यः) सूर्य (तपति) तपता है। (काले) काल में (ह) ही (विश्वा) सब (भूतानि) सत्ताएँ हैं, (काले) काल में (चक्षुः) आँख (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखती है ॥६॥
भावार्थभाषाः - काल ही पाकर सब ऐश्वर्य, प्रकाश और पदार्थ उत्पन्न होते हैं ॥६॥
टिप्पणी: ६−(कालः) (भूतिम्) ऐश्वर्यम्। सत्ताम् (असृजत) अजनयत् (काले) (तपति) प्रकाशते (सूर्यः) प्रेरक आदित्यः (काले) (ह) (विश्वा) (भूतानि) सत्तायुक्तानि जगन्ति (काले) (चक्षुः) नेत्रम् (वि) विविधम् (पश्यति) अवलोकयति ॥