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देवता: कालः ऋषि: भृगुः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: काल सूक्त

का॒लः प्र॒जा अ॑सृजत का॒लो अग्रे॑ प्र॒जाप॑तिम्। स्व॑यं॒भूः क॒श्यपः॑ का॒लात्तपः॑ का॒लाद॑जायत ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कालः। प्रऽजाः। असृजत। कालः। अग्रे। प्रजाऽपतिम्। स्वयम्ऽभूः। कश्यपः। कालात्। तपः। कालात्। अजायत ॥५३.१०॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:53» पर्यायः:0» मन्त्र:10


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काल की महिमा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्रे) पहिले (कालः) काल ने (प्रजाः) प्रजाओं को, और (कालः) काल ने (प्रजापतिम्) प्रजापति [प्रजापालक मनुष्य] को (असृजत) उत्पन्न किया है। (कालात्) काल से (स्वयम्भूः) स्वयम्भू अपने आप उत्पन्न होनेवाला (कश्यपः) कश्यप [द्रष्टा परमेश्वर] और (कालात्) काल से (तपः) तप [ब्रह्मचर्य आदि नियम] (अजायत) प्रकट हुआ है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - प्रलय के पीछे सृष्टि की आदि में काल के प्रभाव से सब प्रजाएँ और प्रजापालक राजा आदि उत्पन्न होते हैं, और तभी अजन्मा परमात्मा अपने गुणों और अद्भुत रचनाओं और नियमों के कारण प्रसिद्ध होता है ॥१०॥
टिप्पणी: १०−(कालः) (प्रजाः) जायमानान् जीवान् (असृजत) उदपादयत् (कालः) (अग्रे) सृष्ट्यादौ (प्रजापतिम्) प्रजापालकं मनुष्यम् (स्वयम्भूः) स्वयमुत्पन्नः परमेश्वरः (कश्यपः) पश्यकः। द्रष्टा (कालात्) (तपः) ब्रह्मचर्यादिव्रतम् (कालात्) (अजायत) प्रकटोऽभवत् ॥