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कामे॑न मा॒ काम॒ आग॒न्हृद॑या॒द्धृद॑यं॒ परि॑। यद॒मीषा॑म॒दो मन॒स्तदैतूप॑ मामि॒ह ॥

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पद पाठ

कामेन। मा। कामः। आ। अगन्। हृदयात्। हृदयम्। परि। यत्। अमीषाम्। अदः। मनः। तत्। आ। एतु। उप। माम्। इह ॥५२.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:52» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काम की प्रशंसा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (कामेन) काम [कर्मफल इच्छा] के साथ (कामः) काम [आशा] (हृदयात्) [एक] हृदय से (हृदयं परि) [दूसरे] हृदय में होकर (मा) मुझको (आ अगन्) प्राप्त हुआ है। (अमीषाम्) इन [विद्वानों] का (यत्) जो (अदः) वह (मनः) मनन है, (तत्) वह (माम्) मुझको (इह) यहाँ (उप) आदर से (आ एतु) प्राप्त होवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों से विद्याएँ प्राप्त करके दृढ़ आशाएँ करता हुआ उन्नति करता रहे ॥४॥
टिप्पणी: ४−(कामेन) कर्मफलेच्छया सह (मा) माम् (कामः) अभिलाषः (आ अगन्) गमेर्लुङि च्लेर्लुकि मकारस्य नकारः। आगतवान् (हृदयात्) एकस्य अन्तःकरणात् (हृदयम्) द्वितीयस्य अन्तःकरणम् (परि) प्रति (यत्) (अमीषाम्) विदुषाम् (अदः) तत् (मनः) मननम् (तत्) (आ एतु) प्राप्नोतु (उप) आदरेण (माम्) (इह) अत्र ॥