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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
काम की प्रशंसा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अक्षये) निर्हानि [पूर्णता] के बीच (प्रतिपानाय) सब प्रकार रक्षा के लिये (दूरात्) दूर से [जन्म से पूर्व कर्म के संस्कार के कारण से] (चकमानाय) कामना कर चुकनेवाले (अस्मै) इस [पुरुष] को (आशाः) दिशाओं ने (कामेन) काम [आशा] के साथ (स्वः) सुख को (आ अशृण्वन्) अङ्गीकार किया है और (अजनयन्) उत्पन्न किया है ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण जन्म से ही अक्षय सुख के लिये दृढ़ आशा और प्रयत्न करता हुआ प्रत्येक स्थान में आनन्द पाता है ॥३॥
टिप्पणी: ३−(दूरात्) पूर्वजन्मफलसंस्कारात् (चकमानाय) कमतेर्लिटः कानच्। कामनां कृतवते पुरुषाय (प्रतिपानाय) सर्वतोरक्षणाय (अक्षये) क्षयराहित्ये। अहानौ। सम्पूर्णत्वे (आ अशृण्वन्) अङ्गीकृतवत्यः (अस्मै) पुरुषाय (आशाः) प्राच्यादयो दिशाः (कामेन) इच्छया (अजनयन्) उदपादयन् (स्वः) सुखम् ॥