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देवता: कामः ऋषि: ब्रह्मा छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: काम सूक्त

त्वं का॑म॒ सह॑सासि॒ प्रति॑ष्ठितो वि॒भुर्वि॒भावा॑ सख॒ आ स॑खीय॒ते। त्वमु॒ग्रः पृत॑नासु सास॒हिः सह॒ ओजो॒ यज॑मानाय धेहि ॥

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पद पाठ

त्वम्। काम। सहसा। असि। प्रतिऽस्थितः। विऽभुः। विभाऽवा। सखे। आ। सखीयते ॥ त्वम्। उग्रः। पृतनासु। ससहिः। सहः। ओजः। यजमानाय। धेहि ॥५२.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:52» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

काम की प्रशंसा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे काम ! [आशा] (त्वम्) तू (सहसा) बल के साथ (प्रतिष्ठिताः) प्रतिष्ठायुक्त (असि) है, (आ) और, (सखे) हे मित्र ! (सखीयते) मित्र चाहनेवाले के लिये तू (विभुः) समर्थ और (विभावा) तेजस्वी है। (त्वम्) तू (पृतनासु) सङ्ग्रामों में (उग्रः) उग्र और (सासहिः) विजयी है, (सहः) बल और (ओजः) पराक्रम (यजमानाय) यजमान को (धेहि) दान कर ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपनी आशाओं में दृढ़ होते हैं, वे ही संसार में प्रतापी और विजयी होकर कीर्ति पाते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(त्वम्) (काम) हे इच्छे ! हे आशे ! (सहसा) बलेन (असि) (प्रतिष्ठितः) प्रतिष्ठायुक्तः (विभुः) समर्थः (विभावा) भातेः-क्वनिप्। विशेषेण दीप्यमानः। तेजस्वी (सखे) हे मित्र (आ) समुच्चये (सखीयते) सखि-क्यच्, शतृ। मित्रमिच्छते पुरुषाय (त्वम्) (उग्रः) प्रचण्डः (पृतनासु) संग्रामेषु (सासहिः) सहेर्यङन्तात्-किप्रत्ययः। विजयी (सहः) बलम् (ओजः) पराक्रमम् (यजमानाय) (धेहि) देहि ॥