वांछित मन्त्र चुनें

यथा॑ शा॒म्याकः॑ प्र॒पत॑न्नप॒वान्नानु॑वि॒द्यते॑। ए॒वा रा॑त्रि॒ प्र पा॑तय॒ यो अ॒स्माँ अ॑भ्यघा॒यति॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यथा। शाम्याकः। प्रऽपतन्। अपऽवान्। न। अनुऽविद्यते ॥ एव। रात्रि। प्र। पातय। यः। अस्मान्। अभिऽअघायति ॥५०.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:50» पर्यायः:0» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (शाम्याकः) सामा [छोटा अन्न विशेष] (प्रपतन्) गिरता हुआ और (अपवान्) दूर चला जाता हुआ (न) नहीं (अनुविद्यते) कुछ भी मिलता है। (एव) वैसे ही, (रात्रि) हे रात्रि ! [उस दुष्ट को] (प्र पातय) गिरा दे, (यः) जो (अस्मान्) हमारा (अभ्यघायति) बुरा चीतता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - धर्म्मात्मा लोग दुष्टों को ऐसा दूर करें कि फिर उसका पता न लगे, जैसे सामा अन्न धूलि में वा पवन में जाकर नहीं मिलता ॥४॥
टिप्पणी: ४−(यथा) (शाम्याकः) श्यामाकाख्यः क्षुद्रधान्यविशेषः (प्रपतन्) निपतन् (अपवान्) वा गतौ-शतृ। अपगच्छन् (न) निषेधे (अनुविद्यते) कदापि लभ्यते (एव) एवम् (रात्रि) (प्रपातय) निपातय शत्रुम् (यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभ्यघायति) अभिलक्ष्य अघं पापमिच्छति ॥